18Jun

शनि देव की आरती – Shani Dev Aarti

शनि देव की आरती

ॐ जय शनि देव हरे प्रभु जय शनि देव हरे
सकल विश्व के संकट क्षण में दूर करे
ॐ जय शनि देव हरे

तुम करुणामय स्वामी विश्व विदित देवा
भक्त हितों के रक्षक तनिक पायें सेवा
ॐ जय शनि देव हरे

सूर्य पुत्र भय काल मिटाओ सबके सुख राशि
दुःख दारिद्र विनाशक तुम चहुँ दिश वासी
ॐ जय शनि देव हरे

दीन बंधू अति द्रवित दयामय सबके प्राण पति
प्रभु सदमार्ग दिखाओ करो दूर कुमति
ॐ जय शनि देव हरे

तुम सर्वत्र विराजत तुम अन्तर्यामी
महाकाल भय हारी तुम सबके स्वामी ॐ जय शनि देव हरे

मात पिता बंधू तुम सब कुछ हो मेरे
पूर्ण कृपा बरसाओ द्वार पड़ा मैं तेरे
ॐ जय शनि देव हरे

हो एकाग्र चित्त प्रभु दया दृष्टि कीजे
परम भक्ति किरपा करि संकट हर लीजे
ॐ जय शनि देव हरे

होये मनोरथ सुफल भक्तों की नैया पार करो
चरण पड़ा प्रभु तेरे सिर पे हाथ धरो
ॐ जय शनि देव हरे

श्री शनि देव कृपा करि उर अज्ञान हरो
बजरंग चिंता हारी भक्तों पे किरपा करो
ॐ जय शनि देव हरे

10Jun

काली माता की आरती – Kaali Mata Aarti

काली माता की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती

तेरे भक्त जनों पे माता भीड पड़ी है भारी दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी
तेरे भक्त जनों पे माता भीड पड़ी है भारी दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी
सौ-सौ सिहों से भी बलशाली, है दस भुजाओं वाली, दुखियों के दुखड़े निवारती

ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती

माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता पूत-कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता पूत-कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली दुखियों के दुखड़े निवारती

ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती

नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना हम तो मांगें माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना हम तो मांगें माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली सतियों के सत को संवारतीओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती..

08May

आरती कुंजबिहारी की- Krishna Aarti

आरती कुंजबिहारी की- Krishna Aarti

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

12Apr

हनुमान जी की आरती – Hanuman Aarti

हनुमान जी की आरती – Hanuman Aarti

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

अनजानी पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।

बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।

जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की

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