09Jul

काल मंत्र

मंत्र :

ॐ भेय हरण च भैरव

भय को हरने वाले भगवान भैरव जो की शिव के अवतार है इनके मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के भय दूर होते है सभी प्रकार के भय दूर करने के लिए भगवान् भैरव का और उनके मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी है।

09Jul

कृष्ण बीज मंत्र

कृष्ण बीज मंत्र

ॐ कृं कृष्णाय नमः

कृष्ण अपने में ही अत्यंत सुखदायी नाम है. भगवन श्री कृष्णा का नाम लेने से कोई भी व्यक्ति आनंदमय हो जाता है. कहते है भगवन श्री कृष्णा सभी लोगो के सभी दुःख हरने वाले भगवान श्री कृष्णा का बीज मंत्र सभी का सुखदायी है। श्री कृष्णा जो की विष्णु के अवतार है अपनी प्रजा का पूरा पूरा धयान रखने वाले और सुखदाता है

 

08Jul

श्री रविदास आरती – Shri Ravidas Aarti

श्री रविदास आरती – Shri Ravidas Aarti

नामु तेरो आरती भजनु मुरारे,हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे ।
नाम तेरा आसनो नाम तेरा उरसा,नामु तेरा केसरो ले छिटकारो ।

नाम तेरा अंभुला नाम तेरा चंदनोघसि,जपे नाम ले तुझहि कउ चारे ।
नाम तेरा दीवा नाम तेरो बाती,नाम तेरो तेल ले माहि पसारे ।

नाम तेरे की ज्योति जगाई,भइलो उजिआरो भवन सगलारे ।
नाम तेरो तागा नाम फूल माला,भार अठारह सगल जूठारे ।

तेरो कियो तुझ ही किया अरपउ,नाम तेरो तुही चंवर ढोलारे ।
दस अठा अठसठे चारे खानी,इहै वरतणि है सगल संसारे ।

कहै ‘रविदास’ नाम तेरो आरती,सतिनाम है हरिभोग तुम्हारे ।

08Jul

श्री गोरखनाथ आरती – Shri Gorakhnath Aarti

श्री गोरखनाथ आरती – Shri Gorakhnath Aarti

जय गोरख देवाजय गोरख देवा।
कर कृपा मम ऊपरनित्य करूं सेवा ॥

शीश जटा अतिसुन्दर भाल चन्द्र सोहे।
कानन कुण्डल झलकतनिरखत मन मोहे॥

गल सेली विच नाग सुशोभिततन भस्मी धारी।
आदि पुरुषयोगीश्वर सन्तन हितकारी॥

नाथ निरंजन आप हीघट-घट के वासी।
करत कृपा निज जन परमेटत यम फांसी॥

ऋद्धि सिद्धि चरणों मेंलोटत माया है दासी।
आप अलख अवधूताउत्तराखण्ड वासी॥

अगम अगोचर अकथअरूपी सबसे हो न्यारे।
योगीजन के आप हीसदा हो रखवारे॥

ब्रह्मा विष्णु तुम्हारानिशदिन गुण गावें।
नारद शारद सुर मिलचरनन चित लावें॥

चारों युग में आप विराजतयोगी तन धारी।
सतयुग द्वापर त्रेता कलयुगभय टारी॥

गुरु गोरख नाथ की आरतीनिशदिन जो गावे।
विनवत बाल त्रिलोकीमुक्ति फल पावे॥

08Jul

श्री विश्वकर्मा आरती – Shri Vishwakarma Aarti

श्री विश्वकर्मा आरती – Shri Vishwakarma Aarti

प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवोप्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनीऔर कंचन महल बनाये।

सकल पदारथ देकर प्रभु जीदुखियों के दुख टारे॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो…॥

विनय करी भगवान कृष्ण नेद्वारिकापुरी बनाओ।
ग्वाल बालों की रक्षा कीप्रभु की लाज बचायो॥

प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो…॥
रामचन्द्र ने पूजन कीतब सेतु बांध रचि डारो।

सब सेना को पार कियाप्रभु लंका विजय करावो॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो…॥

श्री कृष्ण की विजय सुनोप्रभु आके दर्श दिखावो।
शिल्प विद्या का दो प्रकाशमेरा जीवन सफल बनावो॥

प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो…॥

08Jul

श्री गोवर्धन आरती – Shri Govardhan Aarti

श्री गोवर्धन आरती – Shri Govardhan Aarti

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,तोपे चढ़े दूध की धार।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,चकलेश्वर है विश्राम।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,ठोड़ी पे हीरा लाल।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,तेरी झाँकी बनी विशाल।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण,करो भक्त का बेड़ा पार।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

08Jul

भगवान नरसिंह की आरती – Bhagwan Narsingh ki Aarti

भगवान नरसिंह की आरती – Bhagwan Narsingh ki Aarti

॥ श्री नरसिंह भगवान की आरती ॥
ॐ जय नरसिंह हरे,प्रभु जय नरसिंह हरे।
स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे,जन का ताप हरे॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

तुम हो दीन दयाला, भक्तन हितकारी,प्रभु भक्तन हितकारी।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,प्रकटे भय हारी॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी,प्रभु दुस्यु जियो मारी।
दास जान अपनायो,
दास जान अपनायो,जन पर कृपा करी॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे,प्रभु माला पहिनावे।
शिवजी जय जय कहकर,पुष्पन बरसावे॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

08Jul

पुरुषोत्तम देव की आरती – Bhagwan purushottam Aarti

पुरुषोत्तम देव की आरती – Bhagwan purushottam Aarti

जय पुरुषोत्तम देवा,स्वामी जय पुरुषोत्तम देवा।
महिमा अमित तुम्हारी,सुर-मुनि करें सेवा॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

सब मासों में उत्तम,तुमको बतलाया।
कृपा हुई जब हरि की,कृष्ण रूप पाया॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

पूजा तुमको जिसनेसर्व सुक्ख दीना।
निर्मल करके काया,पाप छार कीना॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

मेधावी मुनि कन्या,महिमा जब जानी।
द्रोपदि नाम सती से,जग ने सन्मानी॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

विप्र सुदेव सेवा कर,मृत सुत पुनि पाया।
धाम हरि का पाया,यश जग में छाया॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

नृप दृढ़धन्वा पर जब,तुमने कृपा करी।
व्रतविधि नियम और पूजा,कीनी भक्ति भरी॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

शूद्र मणीग्रिव पापी,दीपदान किया।
निर्मल बुद्धि तुम करके,हरि धाम दिया॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

पुरुषोत्तम व्रत-पूजाहित चित से करते।
प्रभुदास भव नद सेसहजही वे तरते॥

जय पुरुषोत्तम देवा॥

08Jul

श्री गिरिराज चालीसा – Shri Giriraj Chalisa

श्री गिरिराज चालीसा – Shri Giriraj Chalisa

॥ चौपाई ॥
जय हो जय बंदित गिरिराजा।ब्रज मण्डल के श्री महाराजा॥
विष्णु रूप तुम हो अवतारी।सुन्दरता पै जग बलिहारी॥

स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें।सुर मुनि गण दरशन कूं आमें॥
शांत कन्दरा स्वर्ग समाना।जहाँ तपस्वी धरते ध्याना॥

द्रोणगिरि के तुम युवराजा।भक्तन के साधौ हौ काजा॥
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये।जोर विनय कर तुम कूँ लाये॥

मुनिवर संघ जब ब्रज में आये।लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये॥
विष्णु धाम गौलोक सुहावन।यमुना गोवर्धन वृन्दावन॥

देख देव मन में ललचाये।बास करन बहु रूप बनाये॥
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा।कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा॥

आनन्द लें गोलोक धाम के।परम उपासक रूप नाम के॥
द्वापर अंत भये अवतारी।कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी॥

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी।पूजा करिबे की मन ठानी॥
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई।गोवर्द्धन पूजा करवाई॥

पूजन कूँ व्यञ्जन बनवाये।ब्रजवासी घर घर ते लाये॥
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी।सहस भुजा तुमने कर लीनी॥

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में।माँग माँग के भोजन पामें॥
लखि नर नारि मन हरषामें।जै जै जै गिरिवर गुण गामें॥

देवराज मन में रिसियाए।नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए॥
छाँया कर ब्रज लियौ बचाई।एकउ बूँद न नीचे आई॥

सात दिवस भई बरसा भारी।थके मेघ भारी जल धारी॥
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे।नमो नमो ब्रज के रखवारे॥

करि अभिमान थके सुरसाई।क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई॥
त्राहि माम् मैं शरण तिहारी।क्षमा करो प्रभु चूक हमारी॥

बार बार बिनती अति कीनी।सात कोस परिकम्मा दीनी॥
संग सुरभि ऐरावत लाये।हाथ जोड़ कर भेंट गहाये॥

अभय दान पा इन्द्र सिहाये।करि प्रणाम निज लोक सिधाये॥
जो यह कथा सुनैं चित लावें।अन्त समय सुरपति पद पावें॥

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ।करते भक्तन कौ निस्तारौ॥
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें।तिनके दुःख दूर ह्वै जावें॥

कुण्डन में जो करें आचमन।धन्य धन्य वह मानव जीवन॥
मानसी गंगा में जो न्हावें।सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें॥

दूध चढ़ा जो भोग लगावें।आधि व्याधि तेहि पास न आवें॥
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें।मन वांछित फल निश्चय पावें॥

जो नर देत दूध की धारा।भरौ रहे ताकौ भण्डारा॥
करें जागरण जो नर कोई।दुख दरिद्र भय ताहि न होई॥

‘श्याम’ शिलामय निज जन त्राता।भक्ति मुक्ति सरबस के दाता॥
पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें।ताकूँ पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें॥

दंडौती परिकम्मा करहीं।ते सहजहि भवसागर तरहीं॥
कलि में तुम सम देव न दूजा।सुर नर मुनि सब करते पूजा॥

Posts pagination