08Jul

श्री बटुक भैरव चालीसा – batuk bhairav Chalisa

श्री बटुक भैरव चालीसा – batuk bhairav Chalisa

॥ चौपाई ॥
जय जय श्रीकाली के लाला।रहो दास पर सदा दयाला॥
भैरव भीषण भीम कपाली।क्रोधवन्त लोचन में लाली॥

कर त्रिशूल है कठिन कराला।गल में प्रभु मुण्डन की माला॥
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला।पीकर मद रहता मतवाला॥

रुद्र बटुक भक्तन के संगी।प्रेत नाथ भूतेश भुजंगी॥
त्रैलतेश है नाम तुम्हारा।चक्र तुण्ड अमरेश पियारा॥

शेखरचंद्र कपाल बिराजे।स्वान सवारी पै प्रभु गाजे॥
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी।बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने।भैरों काल जगत ने जाने॥
गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर।जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥

क्षेत्रपाल दसपाण कहाये।मंजुल उमानन्द कहलाये॥
चक्रनाथ भक्तन हितकारी।कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी॥

संहारक सुनन्द तव नामा।करहु भक्त के पूरण कामा॥
नाथ पिशाचन के हो प्यारे।संकट मेटहु सकल हमारे॥

कृत्यायु सुन्दर आनन्दा।भक्त जनन के काटहु फन्दा॥
कारण लम्ब आप भय भंजन।नमोनाथ जय जनमन रंजन॥

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा।भक्त चरण में नावत माथा॥
त्वं अशतांग रुद्र के लाला।महाकाल कालों के काला॥

ताप विमोचन अरि दल नासा।भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा॥
श्वेत काल अरु लाल शरीरा।मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥

काली के लाला बलधारी।कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी॥
शंकर के अवतार कृपाला।रहो चकाचक पी मद प्याला॥

शंकर के अवतार कृपाला।बटुक नाथ चेटक दिखलाओ॥
रवि के दिन जन भोग लगावें।धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥

दरशन करके भक्त सिहावें।दारुड़ा की धार पिलावें॥
मठ में सुन्दर लटकत झावा।सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा॥

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा।करमें सुभग सुशोभित कोड़ा॥
कटि घूँघरा सुरीले बाजत।कंचनमय सिंहासन राजत॥

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं।मनवांछित इच्छाफल पावहिं॥
भोपा हैं आपके पुजारी।करें आरती सेवा भारी॥

भैरव भात आपका गाऊँ।बार बार पद शीश नवाऊँ॥
आपहि वारे छीजन धाये।ऐलादी ने रूदन मचाये॥

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे।तो बिन को मोहि भात पिन्हावे॥
रोये बटुक नाथ करुणा कर।गये हिवारे मैं तुम जाकर॥

दुखित भई ऐलादी बाला।तब हर का सिंहासन हाला॥
समय व्याह का जिस दिन आया।प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ।तीन दिवस को भैरव जाओ॥
दल पठान संग लेकर धाया।ऐलादी को भात पिन्हाया॥

पूरन आस बहन की कीनी।सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ॥
भात भेरा लौटे गुण ग्रामी।नमो नमामी अन्तर्यामी॥

06Jul

श्री ललिता चालीसा – Lalita Mata Chalisa

श्री ललिता चालीसा – Lalita Mata Chalisa

॥ चौपाई ॥

जयति जयति जय ललिते माता।तव गुण महिमा है विख्याता॥
तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी।सुर नर मुनि तेरे पद सेवी॥

तू कल्याणी कष्ट निवारिणी।तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी॥
मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी।भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी॥

आदि शक्ति श्री विद्या रूपा।चक्र स्वामिनी देह अनूपा॥
ह्रदय निवासिनी-भक्त तारिणी।नाना कष्ट विपति दल हारिणी॥

दश विद्या है रुप तुम्हारा।श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा॥
धूमा, बगला, भैरवी, तारा।भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा॥

षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी।ललितेशक्ति तुम्हारी संगी॥
ललिते तुम हो ज्योतित भाला।भक्त जनों का काम संभाला॥

भारी संकट जब-जब आये।उनसे तुमने भक्त बचाए॥
जिसने कृपा तुम्हारी पायी।उसकी सब विधि से बन आयी॥

संकट दूर करो माँ भारी।भक्त जनों को आस तुम्हारी॥
त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी।जय जय जय शिव की महारानी॥

योग सिद्दि पावें सब योगी।भोगें भोग महा सुख भोगी॥
कृपा तुम्हारी पाके माता।जीवन सुखमय है बन जाता॥

दुखियों को तुमने अपनाया।महा मूढ़ जो शरण न आया॥
तुमने जिसकी ओर निहारा।मिली उसे सम्पत्ति, सुख सारा॥

आदि शक्ति जय त्रिपुर प्यारी।महाशक्ति जय जय, भय हारी॥
कुल योगिनी, कुण्डलिनी रूपा।लीला ललिते करें अनूपा॥

महा-महेश्वरी, महा शक्ति दे।त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे॥
महा महा-नन्दे कल्याणी।मूकों को देती हो वाणी॥

इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी।होता तब सेवा अनुरागी॥
जो ललिते तेरा गुण गावे।उसे न कोई कष्ट सतावे॥

सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी।तुम हो सर्व शक्ति संचालिनी॥
आया माँ जो शरण तुम्हारी।विपदा हरी उसी की सारी॥

नामा कर्षिणी, चिन्ता कर्षिणी।सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी॥
महिमा तव सब जग विख्याता।तुम हो दयामयी जग माता॥

सब सौभाग्य दायिनी ललिता।तुम हो सुखदा करुणा कलिता॥
आनन्द, सुख, सम्पत्ति देती हो।कष्ट भयानक हर लेती हो॥

मन से जो जन तुमको ध्यावे।वह तुरन्त मन वांछित पावे॥
लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली।तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली॥

मूलाधार, निवासिनी जय जय।सहस्रार गामिनी माँ जय जय॥
छ: चक्रों को भेदने वाली।करती हो सबकी रखवाली॥

योगी, भोगी, क्रोधी, कामी।सब हैं सेवक सब अनुगामी॥
सबको पार लगाती हो माँ।सब पर दया दिखाती हो माँ॥

हेमावती, उमा, ब्रह्माणी।भण्डासुर कि हृदय विदारिणी॥
सर्व विपति हर, सर्वाधारे।तुमने कुटिल कुपंथी तारे॥

चन्द्र- धारिणी, नैमिश्वासिनी।कृपा करो ललिते अधनाशिनी॥
भक्त जनों को दरस दिखाओ।संशय भय सब शीघ्र मिटाओ॥

06Jul

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – Mata Vindheshwari Chalisa

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – Mata Vindheshwari Chalisa

॥ चौपाई ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी।आदि शक्ति जग विदित भवानी॥
सिंहवाहिनी जै जग माता।जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥

कष्ट निवारिनी जय जग देवी।जय जय जय जय असुरासुर सेवी॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी।शेष सहस मुख वर्णत हारी॥

दीनन के दुःख हरत भवानी।नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥
सब कर मनसा पुरवत माता।महिमा अमित जगत विख्याता॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै।सो तुरतहि वांछित फल पावै॥
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी।तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥

रमा राधिका शामा काली।तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला।बेगि मोहि पर होहु दयाला॥

तू ही हिंगलाज महारानी।तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता।तू ही लक्श्मी जग सुखदाता॥

तू ही जान्हवी अरु उत्रानी।हेमावती अम्बे निर्वानी॥
अष्टभुजी वाराहिनी देवी।करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥

चोंसट्ठी देवी कल्यानी।गौरी मंगला सब गुण खानी॥
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी।भद्रकाली सुन विनय हमारी॥

वज्रधारिणी शोक नाशिनी।आयु रक्शिणी विन्ध्यवासिनी॥
जया और विजया बैताली।मातु सुगन्धा अरु विकराली॥

नाम अनन्त तुम्हार भवानी।बरनैं किमि मानुष अज्ञानी॥
जा पर कृपा मातु तव होई।तो वह करै चहै मन जोई॥

कृपा करहु मो पर महारानी।सिद्धि करिय अम्बे मम बानी॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना।ताकर सदा होय कल्याना॥

विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै।जो देवी कर जाप करावै॥
जो नर कहं ऋण होय अपारा।सो नर पाठ करै शत बारा॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई।जो नर पाठ करै मन लाई॥
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे।या जग में सो बहु सुख पावै॥

जाको व्याधि सतावै भाई।जाप करत सब दूरि पराई॥
जो नर अति बन्दी महं होई।बार हजार पाठ कर सोई॥

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई।सत्य बचन मम मानहु भाई॥
जा पर जो कछु संकट होई।निश्चय देबिहि सुमिरै सोई॥

जो नर पुत्र होय नहिं भाई।सो नर या विधि करे उपाई॥
पांच वर्ष सो पाठ करावै।नौरातर में विप्र जिमावै॥

निश्चय होय प्रसन्न भवानी।पुत्र देहि ताकहं गुण खानी॥
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै।विधि समेत पूजन करवावै॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई।प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा।रंक पढ़त होवे अवनीसा॥

यह जनि अचरज मानहु भाई।कृपा दृष्टि तापर होई जाई॥
जय जय जय जगमातु भवानी।कृपा करहु मो पर जन जानी॥

06Jul

श्री बगलामुखी चालीसा – Mata Baglamukhi Chalisa

श्री बगलामुखी चालीसा – Mata Baglamukhi Chalisa

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता।आदिशक्ति सब जग की त्राता॥
बगला सम तब आनन माता।एहि ते भयउ नाम विख्याता॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी।अस्तुति करहिं देव नर-नारी॥
पीतवसन तन पर तव राजै।हाथहिं मुद्गर गदा विराजै॥

तीन नयन गल चम्पक माला।अमित तेज प्रकटत है भाला॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै।शोभा निरखि सकल जन मोहै॥

आसन पीतवर्ण महारानी।भक्तन की तुम हो वरदानी॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन।सुर नर नाग करत सब वन्दन॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै।वेद पुराण सन्त अस भाखै॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा।जाके किये होत दुख-नाशा॥

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै।पीतवसन देवी पहिरावै॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन।अबिर गुलाल सुपारी चन्दन॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना।सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना॥
धूप दीप कर्पूर की बाती।प्रेम-सहित तब करै आरती॥

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे।पुरवहु मातु मनोरथ मोरे॥
मातु भगति तब सब सुख खानी।करहु कृपा मोपर जनजानी॥

त्रिविध ताप सब दु:ख नशावहु।तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु॥
बार-बार मैं बिनवउँ तोहीं।अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं॥

पूजनान्त में हवन करावै।सो नर मनवांछित फल पावै॥
सर्षप होम करै जो कोई।ताके वश सचराचर होई॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै।भक्ति प्रेम से हवन करावै॥
दु:ख दरिद्र व्यापै नहिं सोई।निश्चय सुख-संपति सब होई॥

फूल अशोक हवन जो करई।ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई॥
फल सेमर का होम करीजै।निश्चय वाको रिपु सब छीजै॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई।तेहि के वश में राजा होई॥
गुग्गुल तिल सँग होम करावै।ताको सकल बन्ध कट जावै॥

बीजाक्षर का पाठ जो करहीं।बीजमन्त्र तुम्हरो उच्चरहीं॥
एक मास निशि जो कर जापा।तेहि कर मिटत सकल सन्तापा॥

घर की शुद्ध भूमि जहँ होई।साधक जाप करै तहँ सोई॥
सोइ इच्छित फल निश्चय पावै।जामे नहिं कछु संशय लावै॥

अथवा तीर नदी के जाई।साधक जाप करै मन लाई॥
दस सहस्र जप करै जो कोई।सकल काज तेहि कर सिधि होई॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा।ताकर होय सुयश विस्तारा॥
जो तव नाम जपै मन लाई।अल्पकाल महँ रिपुहिं नसाई॥

सप्तरात्रि जो जापहिं नामा।वाको पूरन हो सब कामा॥
नव दिन जाप करे जो कोई।व्याधि रहित ताकर तन होई॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी।पावै पुत्रादिक फल चारी॥
प्रातः सायं अरु मध्याना।धरे ध्यान होवै कल्याना॥

कहँ लगि महिमा कहौं तिहारी।नाम सदा शुभ मंगलकारी॥
पाठ करै जो नित्य चालीसा।तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा॥

06Jul

श्री अन्नपूर्णा चालीसा – Maa Annapurna Devi Chalisa

श्री अन्नपूर्णा चालीसा – Maa Annapurna Devi Chalisa

॥ चौपाई ॥

नित्य आनन्द करिणी माता।वर-अरु अभय भाव प्रख्याता॥
जय! सौंदर्य सिन्धु जग-जननी।अखिल पाप हर भव-भय हरनी॥

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि।सन्तन तुव पद सेवत ऋषिमुनि॥
काशी पुराधीश्वरी माता।माहेश्वरी सकल जग-त्राता॥

बृषभारुढ़ नाम रुद्राणी।विश्व विहारिणि जय! कल्याणी॥
पदिदेवता सुतीत शिरोमनि।पदवी प्राप्त कीह्न गिरि-नंदिनि॥

पति विछोह दुख सहि नहि पावा।योग अग्नि तब बदन जरावा॥
देह तजत शिव-चरण सनेहू।राखेहु जाते हिमगिरि-गेहू॥

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो।अति आनन्द भवन मँह छायो॥
नारद ने तब तोहिं भरमायहु।ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु॥

ब्रह्मा-वरुण-कुबेर गनाये।देवराज आदिक कहि गाय॥
सब देवन को सुजस बखानी।मतिपलटन की मन मँह ठानी॥

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या।कीह्नी सिद्ध हिमाचल कन्या॥
निज कौ तव नारद घबराये।तब प्रण-पूरण मंत्र पढ़ाये॥

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ।सन्त-बचन तुम सत्य परेखेहु॥
गगनगिरा सुनि टरी न टारे।ब्रह्मा, तब तुव पास पधारे॥

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा।देहुँ आज तुव मति अनुरुपा॥
तुम तप कीह्न अलौकिक भारी।कष्ट उठायेहु अति सुकुमारी॥

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों।है सौगंध नहीं छल तोसों॥
करत वेद विद ब्रह्मा जानहु।वचन मोर यह सांचो मानहु॥

तजि संकोच कहहु निज इच्छा।देहौं मैं मन मानी भिक्षा॥
सुनि ब्रह्मा की मधुरी बानी।मुखसों कछु मुसुकायि भवानी॥

बोली तुम का कहहु विधाता।तुम तो जगके स्रष्टाधाता॥
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों।कहवावा चाहहु का मोसों॥

इज्ञ यज्ञ महँ मरती बारा।शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा॥
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाय।कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये॥

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ।फल कामना संशय गयऊ॥
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा।तब आनन महँ करत निवासा॥

माला पुस्तक अंकुश सोहै।करमँह अपर पाश मन मोहे॥
अन्नपूर्णे! सदपूर्णे।अज-अनवद्य अनन्त अपूर्णे॥

कृपा सगरी क्षेमंकरी माँ।भव-विभूति आनन्द भरी माँ॥
कमल बिलोचन विलसित बाले।देवि कालिके! चण्डि कराले॥

तुम कैलास मांहि ह्वै गिरिजा।विलसी आनन्दसाथ सिन्धुजा॥
स्वर्ग-महालछमी कहलायी।मर्त्य-लोक लछमी पदपायी॥

विलसी सब मँह सर्व सरुपा।सेवत तोहिं अमर पुर-भूपा॥
जो पढ़िहहिं यह तुव चालीसा।फल पइहहिं शुभ साखी ईसा॥

प्रात समय जो जन मन लायो।पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो॥
स्त्री-कलत्र पनि मित्र-पुत्र युत।परमैश्वर्य लाभ लहि अद्भुत॥

राज विमुखको राज दिवावै।जस तेरो जन-सुजस बढ़ावै॥
पाठ महा मुद मंगल दाता।भक्त मनो वांछित निधिपाता॥

06Jul

श्री नर्मदा चालीसा – Shri Narmada Devi Chalisa

श्री नर्मदा चालीसा – Shri Narmada Devi Chalisa

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी।तुम्हरी महिमा सब जग जानी॥
अमरकण्ठ से निकलीं माता।सर्व सिद्धि नव निधि की दाता॥

कन्या रूप सकल गुण खानी।जब प्रकटीं नर्मदा भवानी॥
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा।अश्वनि माघ मास अवतारा॥

वाहन मकर आपको साजैं।कमल पुष्प पर आप विराजैं॥
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं।तब ही मनवांछित फल पावैं॥

दर्शन करत पाप कटि जाते।कोटि भक्त गण नित्य नहाते॥
जो नर तुमको नित ही ध्यावै।वह नर रुद्र लोक को जावैं॥

मगरमच्छ तुम में सुख पावैं।अन्तिम समय परमपद पावैं॥
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं।पांव पैंजनी नित ही राजैं॥

कल-कल ध्वनि करती हो माता।पाप ताप हरती हो माता॥
पूरब से पश्चिम की ओरा।बहतीं माता नाचत मोरा॥

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं।सूत आदि तुम्हरौ यश गावैं॥
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं।सकल देव गण तुमको ध्यावैं॥

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे।ये सब कहलाते दु:ख हारे॥
मनोकामना पूरण करती।सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं॥

कनखल में गंगा की महिमा।कुरुक्षेत्र में सरसुती महिमा॥
पर नर्मदा ग्राम जंगल में।नित रहती माता मंगल में॥

एक बार करके असनाना।तरत पीढ़ी है नर नाना॥
मेकल कन्या तुम ही रेवा।तुम्हरी भजन करें नित देवा॥

जटा शंकरी नाम तुम्हारा।तुमने कोटि जनों को तारा॥
समोद्भवा नर्मदा तुम हो।पाप मोचनी रेवा तुम हो॥

तुम महिमा कहि नहिं जाई।करत न बनती मातु बड़ाई॥
जल प्रताप तुममें अति माता।जो रमणीय तथा सुख दाता॥

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी।महिमा अति अपार है तुम्हारी॥
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी।छुवत पाषाण होत वर वारी॥

यमुना में जो मनुज नहाता।सात दिनों में वह फल पाता॥
सरसुति तीन दिनों में देतीं।गंगा तुरत बाद ही देतीं॥

पर रेवा का दर्शन करके।मानव फल पाता मन भर के॥
तुम्हरी महिमा है अति भारी।जिसको गाते हैं नर-नारी॥

जो नर तुम में नित्य नहाता।रुद्र लोक मे पूजा जाता॥
जड़ी बूटियां तट पर राजें।मोहक दृश्य सदा ही साजें॥

वायु सुगन्धित चलती तीरा।जो हरती नर तन की पीरा॥
घाट-घाट की महिमा भारी।कवि भी गा नहिं सकते सारी॥

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा।और सहारा नहीं मम दूजा॥
हो प्रसन्न ऊपर मम माता।तुम ही मातु मोक्ष की दाता॥

जो मानव यह नित है पढ़ता।उसका मान सदा ही बढ़ता॥
जो शत बार इसे है गाता।वह विद्या धन दौलत पाता॥

अगणित बार पढ़ै जो कोई।पूरण मनोकामना होई॥
सबके उर में बसत नर्मदा।यहां वहां सर्वत्र नर्मदा॥

06Jul

श्री शारदा चालीसा – Shri Sharda Maa Chalisa

श्री शारदा चालीसा – Shri Sharda Maa Chalisa

॥ चौपाई ॥

जय जय जय शारदा महारानी।आदि शक्ति तुम जग कल्याणी॥
रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता।तीन लोक महं तुम विख्याता॥

दो सहस्त्र बर्षहि अनुमाना।प्रगट भई शारद जग जाना॥
मैहर नगर विश्व विख्याता।जहाँ बैठी शारद जग माता॥

त्रिकूट पर्वत शारदा वासा।मैहर नगरी परम प्रकाशा॥
शरद इन्दु सम बदन तुम्हारो।रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो॥

कोटि सूर्य सम तन द्युति पावन।राज हंस तुम्हारो शचि वाहन॥
कानन कुण्डल लोल सुहावहि।उरमणि भाल अनूप दिखावहिं॥

वीणा पुस्तक अभय धारिणी।जगत्मातु तुम जग विहारिणी॥
ब्रह्म सुता अखंड अनूपा।शारद गुण गावत सुरभूपा॥

हरिहर करहिं शारदा बन्दन।बरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन॥
शारद रूप चण्डी अवतारा।चण्ड-मुण्ड असुरन संहारा॥

महिषा सुर वध कीन्हि भवानी।दुर्गा बन शारद कल्याणी॥
धरा रूप शारद भई चण्डी।रक्त बीज काटा रण मुण्डी॥

तुलसी सूर्य आदि विद्वाना।शारद सुयश सदैव बखाना॥
कालिदास भए अति विख्याता।तुम्हारी दया शारदा माता॥

वाल्मीक नारद मुनि देवा।पुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा॥
चरण-शरण देवहु जग माया।सब जग व्यापहिं शारद माया॥

अणु-परमाणु शारदा वासा।परम शक्तिमय परम प्रकाशा॥
हे शारद तुम ब्रह्म स्वरूपा।शिव विरंचि पूजहिं नर भूपा॥

ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदा।शारद के गुण गावहिं वेदा॥
जय जग बन्दनि विश्व स्वरुपा।निर्गुण-सगुण शारदहिं रुपा॥

सुमिरहु शारद नाम अखंडा।व्यापइ नहिं कलिकाल प्रचण्डा॥
सूर्य चन्द्र नभ मण्डल तारे।शारद कृपा चमकते सारे॥

उद्धव स्थिति प्रलय कारिणी।बन्दउ शारद जगत तारिणी॥
दु:ख दरिद्र सब जाहिं नसाई।तुम्हारी कृपा शारदा माई॥

परम पुनीति जगत अधारा।मातु शारदा ज्ञान तुम्हारा॥
विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानी।जय जय जय शारदा भवानी॥

शारदे पूजन जो जन करहीं।निश्चय ते भव सागर तरहीं॥
शारद कृपा मिलहिं शुचि ज्ञाना।होई सकल विधि अति कल्याणा॥

जग के विषय महा दु:ख दाई।भजहुँ शारदा अति सुख पाई॥
परम प्रकाश शारदा तोरा।दिव्य किरण देवहुँ मम ओरा॥

परमानन्द मगन मन होई।मातु शारदा सुमिरई जोई॥
चित्त शान्त होवहिं जप ध्याना।भजहुँ शारदा होवहिं ज्ञाना॥

रचना रचित शारदा केरी।पाठ करहिं भव छटई फेरी॥
सत्–सत् नमन पढ़ीहे धरिध्याना।शारद मातु करहिं कल्याणा॥

शारद महिमा को जग जाना।नेति-नेति कह वेद बखाना॥
सत्–सत् नमन शारदा तोरा।कृपा दृष्टि कीजै मम ओरा॥

जो जन सेवा करहिं तुम्हारी।तिन कहँ कतहुँ नाहि दु:खभारी॥
जो यह पाठ करै चालीसा।मातु शारदा देहुँ आशीषा॥

06Jul

श्री बाबा गंगाराम चालीसा – Baba Ganga Ram Chalisa

श्री बाबा गंगाराम चालीसा – Baba Ganga Ram Chalisa

॥ चौपाई ॥

गंगाराम देव हितकारी।वैश्य वंश प्रकटे अवतारी॥
पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ।धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ॥

उत्तम कुल उत्तम सतसंगा।पावन नाम राम अरू गंगा॥
बाबा नाम परम हितकारी।सत सत वर्ष सुमंगलकारी॥

बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं।तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई॥
जो जन बाबा में चित लावा।तेहिं परताप अमर पद पावा॥

नगर झुंझनूं धाम तिहारो।शरणागत के संकट टारो॥
धरम हेतु सब सुख बिसराये।दीन हीन लखि हृदय लगाये॥

एहि विधि चालीस वर्ष बिताये।अन्त देह तजि देव कहाये॥
देवलोक भई कंचन काया।तब जनहित संदेश पठाया॥

निज कुल जन को स्वप्न दिखावा।भावी करम जतन बतलावा॥
आपन सुत को दर्शन दीन्हों।धरम हेतु सब कारज कीन्हों॥

नभ वाणी जब हुई निशा में।प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में॥
ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा।जिमि जनहित प्रकटेउ सब ईशा॥

चमत्कार एहि भांति दिखाया।अन्तरध्यान भई सब माया॥
सत्य वचन सुनि करहिं विचारा।मन महँ गंगाराम पुकारा॥

जो जन करई मनौती मन में।बाबा पीर हरहिं पल छन में॥
ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा।त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा॥

उच्च मनोरथ शुचि आचारी।राम नाम के अटल पुजारी॥
जो नित गंगाराम पुकारे।बाबा दुख से ताहिं उबारे॥

बाबा में जिन्ह चित्त लगावा।ते नर लोक सकल सुख पावा॥
परहित बसहिं जाहिं मन मांही।बाबा बसहिं ताहिं तन मांही॥

धरहिं ध्यान रावरो मन में।सुखसंतोष लहै न मन में॥
धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा।पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा॥

गंगाराम नाम जो गावे।लहि बैकुंठ परम पद पावे॥
बाबा पीर हरहिं सब भांति।जो सुमरे निश्छल दिन राती॥

दीन बन्धु दीनन हितकारी।हरौ पाप हम शरण तिहारी॥
पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा।सदा करो संतन मँह बासा॥

तारण तरण गंग का पानी।गंगाराम उभय सुनिशानी॥
कृपासिंधु तुम हो सुखसागर।सफल मनोरथ करहु कृपाकर॥

झुंझनूं नगर बड़ा बड़ भागी।जहँ जन्में बाबा अनुरागी॥
पूरन ब्रह्म सकल घटवासी।गंगाराम अमर अविनाशी॥

ब्रह्म रूप देव अति भोला।कानन कुण्डल मुकुट अमोला॥
नित्यानन्द तेज सुख रासी।हरहु निशातन करहु प्रकासी॥

गंगा दशहरा लागहिं मेला।नगर झुंझनूं मँह शुभ बेला॥
जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा।छवि निरखि मन हरष अपारा॥

प्रात: काल ले नाम तुम्हारा।चौरासी का हो निस्तारा॥
पंचदेव मन्दिर विख्याता।दरशन हित भगतन का तांता॥

जय श्री गंगाराम नाम की।भवतारण तरि परम धाम की॥
‘महावीर’ धर ध्यान पुनीता।विरचेउ गंगाराम सुगीता॥

06Jul

श्री रविदास चालीसा – Shri Ravidas Chalisa

श्री रविदास चालीसा – Shri Ravidas Chalisa

॥ चौपाई ॥

जै होवै रविदास तुम्हारी।कृपा करहु हरिजन हितकारी॥
राहू भक्त तुम्हारे ताता।कर्मा नाम तुम्हारी माता॥

काशी ढिंग माडुर स्थाना।वर्ण अछूत करत गुजराना॥
द्वादश वर्ष उम्र जब आई।तुम्हरे मन हरि भक्ति समाई॥

रामानन्द के शिष्य कहाये।पाय ज्ञान निज नाम बढ़ाये॥
शास्त्र तर्क काशी में कीन्हों।ज्ञानिन को उपदेश है दीन्हों॥

गंग मातु के भक्त अपारा।कौड़ी दीन्ह उनहिं उपहारा॥
पंडित जन ताको लै जाई।गंग मातु को दीन्ह चढ़ाई॥

हाथ पसारि लीन्ह चौगानी।भक्त की महिमा अमित बखानी॥
चकित भये पंडित काशी के।देखि चरित भव भय नाशी के॥

रल जटित कंगन तब दीन्हाँ ।रविदास अधिकारी कीन्हाँ॥
पंडित दीजौ भक्त को मेरे।आदि जन्म के जो हैं चेरे॥

पहुँचे पंडित ढिग रविदासा।दै कंगन पुरइ अभिलाषा॥
तब रविदास कही यह बाता।दूसर कंगन लावहु ताता॥

पंडित जन तब कसम उठाई।दूसर दीन्ह न गंगा माई॥
तब रविदास ने वचन उचारे।पडित जन सब भये सुखारे॥

जो सर्वदा रहै मन चंगा।तौ घर बसति मातु है गंगा॥
हाथ कठौती में तब डारा।दूसर कंगन एक निकारा॥

चित संकोचित पंडित कीन्हें।अपने अपने मारग लीन्हें॥
तब से प्रचलित एक प्रसंगा।मन चंगा तो कठौती में गंगा॥

एक बार फिरि परयो झमेला।मिलि पंडितजन कीन्हों खेला॥
सालिग राम गंग उतरावै।सोई प्रबल भक्त कहलावै॥

सब जन गये गंग के तीरा।मूरति तैरावन बिच नीरा॥
डूब गईं सबकी मझधारा।सबके मन भयो दुःख अपारा॥

पत्थर मूर्ति रही उतराई।सुर नर मिलि जयकार मचाई॥
रह्यो नाम रविदास तुम्हारा।मच्यो नगर महँ हाहाकारा॥

चीरि देह तुम दुग्ध बहायो।जन्म जनेऊ आप दिखाओ॥
देखि चकित भये सब नर नारी।विद्वानन सुधि बिसरी सारी॥

ज्ञान तर्क कबिरा संग कीन्हों।चकित उनहुँ का तुम करि दीन्हों॥
गुरु गोरखहि दीन्ह उपदेशा।उन मान्यो तकि संत विशेषा॥

सदना पीर तर्क बहु कीन्हाँ।तुम ताको उपदेश है दीन्हाँ॥
मन महँ हार्योो सदन कसाई।जो दिल्ली में खबरि सुनाई॥

मुस्लिम धर्म की सुनि कुबड़ाई।लोधि सिकन्दर गयो गुस्साई॥
अपने गृह तब तुमहिं बुलावा।मुस्लिम होन हेतु समुझावा॥

मानी नाहिं तुम उसकी बानी।बंदीगृह काटी है रानी॥
कृष्ण दरश पाये रविदासा।सफल भई तुम्हरी सब आशा॥

ताले टूटि खुल्यो है कारा।माम सिकन्दर के तुम मारा॥
काशी पुर तुम कहँ पहुँचाई।दै प्रभुता अरुमान बड़ाई॥

मीरा योगावति गुरु कीन्हों।जिनको क्षत्रिय वंश प्रवीनो॥
तिनको दै उपदेश अपारा।कीन्हों भव से तुम निस्तारा॥

01Jul

Mata Ka Bhajan – जय जय माँ करता जा मैया का नाम जपता जा

Mata Ka Bhajan – जय जय माँ करता जा मैया का नाम जपता जा

 

वो है नसीबो वाले
जिनको माँ के बुलावे आते है
बिन मांगे ही सब कुछ मिलता है
हर भर छोली पाते है
भर भर छोली पाते है

जय हो जय हो जय हो
जय माँ -4
जोर से बोलो -3
जय माता दी
जोर से बोलो -3
जय माता दी

ऊंचे पर्वत पे मैया ने
सोना दरबार लगया है – 2
चढ़ता जा तू पोढ़ी -पोढ़ी
माँ ने तुझे बुलाया है -2
जय जय माँ करता जा
मैया का नाम जपता जा -3

चैन न पाया कही जहा में
भटका में दिन रैना
भटका में दिन रैना, रे मैया, भटका में दिन रैना

जय माता दी – 8
अपने डर की राह दिखा दे
पावन हो जाए नैना
पावन हो जाए नैना रे मैया पावन हो जाए नैना

डर की सीढ़ी चढ़ पाऊ में
डर की सीढ़ी चढ़ पाऊ में तेरी या महामाया है
जय माता दी -8

जय जय माँ करता जा मैया का नाम जपता जा -2
जय हो जय हो जय हो

रख के भेष मखानच्को वाला
तूने धन बरसाया
तूने धन बरसाया माँ आंबे तूने धन बरसाया
जय माता दी -8

सबकी मुरादे पूरी करदी
चमत्कार दिखलाया
चमत्कार दिखलाया माँ आंबे चमत्कार दिखलाया

तेरी कृपा से जगदम्बे
तेरी कृपा से जगदम्बे तूने सोया भाग जगाया है
जय माता दी -8

ऊंचे पर्वत पे मैया ने सोना दरबार लगाया है -२
चढ़ता जा तो पौढ़ी पोढ़ी माँ ने तुझे बुलाया है

जय जय माँ जपता जा मैया का नाम जपता जा
जय जय माँ करता जा मैया का नाम जाप्ता जा
जय माँ की बोल जय माँ की बोल जय माँ की बोल
जय माँ की बोल जय माँ की बोल

जय जय माँ करता जा मैया का नाम जपता जा

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