30Jun

जींद जप ले गुरा जी दा नाम – Jind Jap Le Gura Ji Da Naam

जींद जप ले गुरा जी दा नाम – Jind Jap Le Gura Ji Da Naam

 

जींद जप ले गुरा जी दा नाम
जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी

जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी

तेरी गुरु जी ने फड़ लेनी बांह
तेरी गुरु जी ने फड़ लेनी बांह
डूबी हुई तर जाएगी

जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी -2
डूबी हुई तर जाएगी

हर वेले हर हाल दे अंदर
करदी में शुक्राना -2

इस दे नाम दा
जाम में पीवा
है मेरा मेहकना -3

हर वेले हर हाल दे अंदर
करदी में शुक्राना
इस दे नाम दा
जाम में पीवा
है मेरा मेहकना

जी में सबनु
जी में सबनु एह दसदी फिरा
डूबी हुई तर जाएगी

जींद जप पे गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी

तेरी गुरु जी ने फड़ लेनी बांह – 2
डूबी हुई तर जाएगी

जींद जप पे गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी
ओ जींद जप पे गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी

भवसागर विच वेदी तेहिओ
सतगुरु पार लागवे
सतगुरु पार लागवे हो
सतगुरु पार लागवे
हर औखाण हर
मुश्किल विच वि
सतगुरु आन बचावे -2

भवसागर विच वेदी तेहिओ
सतगुरु पार लागवे
हर औखाण हर
मुश्किल विच वि
सतगुरु आन बचावे

नाले खोल देवे
नाल खोल देवे सूखा वाले राह
डूबी हुई तर जाएगी
जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी

तेरी गुरु जी ने फड़ लेनी बांह – 2
डूबी हुई तर जाएगी
जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी
औ जींद जप ले गुरा जी दा नाम
डूबी हुई तर जाएगी -2

26Jun

साई की मस्ती चढ़ गई है _साईं की भक्ति

साई की मस्ती चढ़ गई है _साईं की भक्ति

 

साई नाम की मस्ती में हम
नाचे छुमे गाये
ना कोई रोके ना कोई टोके
हम साईं को आज मनाये

कोई क्या रोकेगा कोई क्या रोकेगा
अपने साईं के दीवानो को
साईं की मस्ती चढ़ गयी है साई के मस्तानो को
साईं की मस्ती चढ़ गयी है साई के मस्तानो को

कोई क्या रोकेगा कोई क्या रोकेगा
अपने साईं के दीवानो को -2
साईं की मस्ती चढ़ गयी है साई के मस्तानो को -2

ये शाम बड़ी मस्ती वाली, मेरे साईं जी घर आये है
मेरे साई जी घर ए है, मेरे साई जी घर ए है

धन्य हो गए भक्त आज साईं के दर्शन पाए है
साईं के दर्शन पाए है, साईं के दर्शन पाए है

ये शाम बड़ी खुशियों वाली मेरे साईं जी घर आये है
सब धन्य हो गए भक्त आज साईं के दर्शन पाए है

कैसे भूलेंगे साईं, कैसे भूलेंगे साईं
तेरे दिए हुए नाज़रानो को
साईं की मस्ती चढ़ गयी है साई के मस्तानो को -3

तेरे रंग में रंग गए भक्त आज
सब करते है गुणगान तेरा
सब करते है गुणगान तेरा, सब करते है गुणगान तेरा

हम दूर हुए खुशिया छायी हम करते है हमको हे मिला वरदान तेरा
हमको हे मिला वरदान तेरा, हमको हे मिला वरदान तेरा
तेरे रंग में रंग गए भक्त आज
सब करते है गुणगान तेरा
हम दूर हुए खुशिया छायी हम करते है हमको हे मिला वरदान तेरा

हो जाए जो हमसे खता, हो जाए जो हमसे खता
तो वक़्त बना नादानो को

साईं की मस्ती चढ़ गयी है साईं के मस्तानो को – 3

धरती नाचे, अम्बर नाचे, और नाचे विश्व सितारे है
नाचे मस्त सितारे है, और नाचे मस्त सितारे है
भक्तो के दिल भी छुम उठे जब बजते डोल नगारे है
जब बजते डोल नगारे है, जब बजते डोल नगारे है

धरती नाचे, अम्बर नाचे, और नाचे विश्व सितारे है
भक्तो के दिल भी छुम उठे जब बजते डोल नगारे है

में भी नाचू।, तू भी नाचो
पुरे करलो अरमानो को
साई की मस्ती चढ़ गयी है साई के मस्तानो को
साई के मस्तानो को – 10

26Jun

शुक्राना तेरा शुक्राना – Guru Ji Bhajan

शुक्राना तेरा शुक्राना – Guru Ji Bhajan

शुक्राना तेरा शुक्राना
गुरु जी – 5

तू पालन हारा है तू मेरा सहारा है
मेनू जड़ वि लॉड पेयी
दित्ता तू सहारा है

करा तेरा शुक्राना
गुरु जी – 8

मैं तान कटपुतली हाँ
तेरे हाथ जोड़ा ने -2

जद तू है नाल मेरे
किस गल्ल दिन थोड़ा ने -2
मैं तान कटपुतली हाँ
तेरे हाथ जोड़ा ने
जद तू है नाल मेरे
किस गल्ल दिन थोड़ा ने

करा तेरा शुक्राना – 6
पल पल करा में
तेरा शुक्राना – 3

मेरे दिल दे अंदर गुरु दी मूरत है -2

मेरे दिल विच ठण्ड पाए
गुरु जी दी सूरत है -2

मेरे दिल विच ठण्ड पाए
गुरु जी दी सूरत है

करा तेरा शुक्राना
गुरु जी -6
पल पल करा में
तेरा शुक्राना शुक्राना
तेरा शुक्राना – 3
शुक्राना तेरा शुक्राना

26Jun

श्री साईं चालीसा – Shri Sai Chalisa

श्री साईं चालीसा – Shri Sai Chalisa

पहले साई के चरणों में,अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे शिरडी साई आए,सारा हाल सुनाऊं मैं॥

कौन है माता, पिता कौन है,ये न किसी ने भी जाना।
कहां जन्म साई ने धारा,प्रश्न पहेली रहा बना॥

कोई कहे अयोध्या के,ये रामचन्द्र भगवान हैं।
कोई कहता साई बाबा,पवन पुत्र हनुमान हैं॥

कोई कहता मंगल मूर्ति,श्री गजानंद हैं साई।
कोई कहता गोकुल मोहन,देवकी नन्दन हैं साई॥

शंकर समझे भक्त कई तो,बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत्त का,पूजा साई की करते॥

कुछ भी मानो उनको तुम,पर साई हैं सच्चे भगवान।
बड़े दयालु दीनबन्धु,कितनों को दिया जीवन दान॥

कई वर्ष पहले की घटना,तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।
किसी भाग्यशाली की,शिरडी में आई थी बारात॥

आया साथ उसी के था,बालक एक बहुत सुन्दर।
आया, आकर वहीं बस गया,पावन शिरडी किया नगर॥

कई दिनों तक भटकता,भिक्षा माँग उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला,जग में जो हो गई अमर॥

जैसे-जैसे अमर उमर बढ़ी,बढ़ती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में,साई बाबा का गुणगान ॥10॥

दिग्-दिगन्त में लगा गूंजने,फिर तो साईंजी का नाम।
दीन-दुखी की रक्षा करना,यही रहा बाबा का काम॥

बाबा के चरणों में जाकर,जो कहता मैं हूं निर्धन।
दया उसी पर होती उनकी,खुल जाते दुःख के बंधन॥

कभी किसी ने मांगी भिक्षा,दो बाबा मुझको संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साई,देते थे उसको वरदान॥

स्वयं दुःखी बाबा हो जाते,दीन-दुःखी जन का लख हाल।
अन्तःकरण श्री साई का,सागर जैसा रहा विशाल॥

भक्त एक मद्रासी आया,घर का बहुत ब़ड़ा धनवान।
माल खजाना बेहद उसका,केवल नहीं रही संतान॥

लगा मनाने साईनाथ को,बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को,तुम्हीं मेरी पार करो॥

कुलदीपक के बिना अंधेरा,छाया हुआ घर में मेरे।
इसलिए आया हूँ बाबा,होकर शरणागत तेरे॥

कुलदीपक के अभाव में,व्यर्थ है दौलत की माया।
आज भिखारी बनकर बाबा,शरण तुम्हारी मैं आया॥

दे दो मुझको पुत्र-दान,मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।
और किसी की आशा न मुझको,सिर्फ भरोसा है तुम पर॥

अनुनय-विनय बहुत की उसने,चरणों में धर के शीश।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने,दिया भक्त को यह आशीश ॥20॥

“अल्ला भला करेगा तेरा”,पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी,और तेरे उस बालक पर॥

अब तक नहीं किसी ने पाया,साई की कृपा का पार।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को,धन्य किया उसका संसार॥

तन-मन से जो भजे उसी का,जग में होता है उद्धार।
सांच को आंच नहीं हैं कोई,सदा झूठ की होती हार॥

मैं हूं सदा सहारे उसके,सदा रहूँगा उसका दास।
साई जैसा प्रभु मिला है,इतनी ही कम है क्या आस॥

मेरा भी दिन था एक ऐसा,मिलती नहीं मुझे रोटी।
तन पर कप़ड़ा दूर रहा था,शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥

सरिता सन्मुख होने पर भी,मैं प्यासा का प्यासा था।
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर,दावाग्नी बरसाता था॥

धरती के अतिरिक्त जगत में,मेरा कुछ अवलम्ब न था।
बना भिखारी मैं दुनिया में,दर-दर ठोकर खाता था॥

ऐसे में एक मित्र मिला जो,परम भक्त साई का था।
जंजालों से मुक्त मगर,जगती में वह भी मुझसा था॥

बाबा के दर्शन की खातिर,मिल दोनों ने किया विचार।
साई जैसे दया मूर्ति के,दर्शन को हो गए तैयार॥

पावन शिरडी नगर में जाकर,देख मतवाली मूरति।
धन्य जन्म हो गया कि हमने,जब देखी साई की सूरति ॥30॥

जब से किए हैं दर्शन हमने,दुःख सारा काफूर हो गया।
संकट सारे मिटै और,विपदाओं का अन्त हो गया॥

मान और सम्मान मिला,भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिम्‍बित हो उठे जगत में,हम साई की आभा से॥

बाबा ने सन्मान दिया है,मान दिया इस जीवन में।
इसका ही संबल ले मैं,हंसता जाऊंगा जीवन में॥

साई की लीला का मेरे,मन पर ऐसा असर हुआ।
लगता जगती के कण-कण में,जैसे हो वह भरा हुआ॥

“काशीराम” बाबा का भक्त,शिरडी में रहता था।
मैं साई का साई मेरा,वह दुनिया से कहता था॥

सीकर स्वयं वस्त्र बेचता,ग्राम-नगर बाजारों में।
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी,साई की झंकारों में॥

स्तब्ध निशा थी, थे सोय,रजनी आंचल में चाँद सितारे।
नहीं सूझता रहा हाथ को,हाथ तिमिर के मारे॥

वस्त्र बेचकर लौट रहा था,हाय! हाट से काशी।
विचित्र ब़ड़ा संयोग कि उस दिन,आता था एकाकी॥

घेर राह में ख़ड़े हो गए,उसे कुटिल अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसकी ही,ध्वनि प़ड़ी सुनाई॥

लूट पीटकर उसे वहाँ से,कुटिल गए चम्पत हो।
आघातों में मर्माहत हो,उसने दी संज्ञा खो ॥40॥

बहुत देर तक प़ड़ा रह वह,वहीं उसी हालत में।
जाने कब कुछ होश हो उठा,वहीं उसकी पलक में॥

अनजाने ही उसके मुंह से,निकल प़ड़ा था साई।
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में,बाबा को प़ड़ी सुनाई॥

क्षुब्ध हो उठा मानस उनका,बाबा गए विकल हो।
लगता जैसे घटना सारी,घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥

उन्मादी से इ़धर-उ़धर तब,बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चीजें जो भी आई,उनको लगने पटकने॥

और धधकते अंगारों में,बाबा ने अपना कर डाला।
हुए सशंकित सभी वहाँ,लख ताण्डवनृत्य निराला॥

समझ गए सब लोग,कि कोई भक्त प़ड़ा संकट में।
क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ,पर प़ड़े हुए विस्मय में॥

उसे बचाने की ही खातिर,बाबा आज विकल है।
उसकी ही पी़ड़ा से पीडित,उनकी अन्तःस्थल है॥

इतने में ही विविध ने अपनी,विचित्रता दिखलाई।
लख कर जिसको जनता की,श्रद्धा सरिता लहराई॥

लेकर संज्ञाहीन भक्त को,गा़ड़ी एक वहाँ आई।
सन्मुख अपने देख भक्त को,साई की आंखें भर आई॥

शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा,बाबा का अन्तःस्थल।
आज न जाने क्यों रह-रहकर,हो जाता था चंचल ॥50॥

आज दया की मूर्ति स्वयं था,बना हुआ उपचारी।
और भक्त के लिए आज था,देव बना प्रतिहारी॥

आज भक्ति की विषम परीक्षा में,सफल हुआ था काशी।
उसके ही दर्शन की खातिर थे,उम़ड़े नगर-निवासी॥

जब भी और जहां भी कोई,भक्त प़ड़े संकट में।
उसकी रक्षा करने बाबा,आते हैं पलभर में॥

युग-युग का है सत्य यह,नहीं कोई नई कहानी।
आपतग्रस्त भक्त जब होता,जाते खुद अन्तर्यामी॥

भेद-भाव से परे पुजारी,मानवता के थे साई।
जितने प्यारे हिन्दु-मुस्लिम,उतने ही थे सिक्ख ईसाई॥

भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का,तोड़-फोड़ बाबा ने डाला।
राह रहीम सभी उनके थे,कृष्ण करीम अल्लाताला॥

घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा,मस्जिद का कोना-कोना।
मिले परस्पर हिन्दु-मुस्लिम,प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥

चमत्कार था कितना सुन्दर,परिचय इस काया ने दी।
और नीम कडुवाहट में भी,मिठास बाबा ने भर दी॥

सब को स्नेह दिया साई ने,सबको संतुल प्यार किया।
जो कुछ जिसने भी चाहा,बाबा ने उसको वही दिया॥

ऐसे स्नेहशील भाजन का,नाम सदा जो जपा करे।
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो,पलभर में वह दूर टरे ॥60॥

साई जैसा दाता हम,अरे नहीं देखा कोई।
जिसके केवल दर्शन से ही,सारी विपदा दूर गई॥

तन में साई, मन में साई,साई-साई भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर,सुधि उसकी तुम किया करो॥

जब तू अपनी सुधि तज,बाबा की सुधि किया करेगा।
और रात-दिन बाबा-बाबा,ही तू रटा करेगा॥

तो बाबा को अरे ! विवश हो,सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हर इच्छा बाबा को,पूरी ही करनी होगी॥

जंगल, जगंल भटक न पागल,और ढूंढ़ने बाबा को।
एक जगह केवल शिरडी में,तू पाएगा बाबा को॥

धन्य जगत में प्राणी है वह,जिसने बाबा को पाया।
दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो,साई का ही गुण गाया॥

गिरे संकटों के पर्वत,चाहे बिजली ही टूट पड़े।
साई का ले नाम सदा तुम,सन्मुख सब के रहो अड़े॥

इस बूढ़े की सुन करामत,तुम हो जाओगे हैरान।
दंग रह गए सुनकर जिसको,जाने कितने चतुर सुजान॥

एक बार शिरडी में साधु,ढ़ोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी,जनता को था भरमाया॥

जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर,करने लगा वह भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतागण,घर मेरा है वृन्दावन ॥70॥

औषधि मेरे पास एक है,और अजब इसमें शक्ति।
इसके सेवन करने से ही,हो जाती दुःख से मुक्ति॥

अगर मुक्त होना चाहो,तुम संकट से बीमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन,हर नर से, हर नारी से॥

लो खरीद तुम इसको,इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह,गुण उसके हैं अति भारी॥

जो है संतति हीन यहां यदि,मेरी औषधि को खाए।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त,अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥

औषधि मेरी जो न खरीदे,जीवन भर पछताएगा।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही,अरे यहां आ पाएगा॥

दुनिया दो दिनों का मेला है,मौज शौक तुम भी कर लो।
अगर इससे मिलता है, सब कुछ,तुम भी इसको ले लो॥

हैरानी बढ़ती जनता की,लख इसकी कारस्तानी।
प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था,लख लोगों की नादानी॥

खबर सुनाने बाबा को यह,गया दौड़कर सेवक एक।
सुनकर भृकुटी तनी और,विस्मरण हो गया सभी विवेक॥

हुक्म दिया सेवक को,सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।
या शिरडी की सीमा से,कपटी को दूर भगाओ॥

मेरे रहते भोली-भाली,शिरडी की जनता को।
कौन नीच ऐसा जो,साहस करता है छलने को ॥80॥

पलभर में ऐसे ढोंगी,कपटी नीच लुटेरे को।
महानाश के महागर्त में पहुँचा,दूँ जीवन भर को॥

तनिक मिला आभास मदारी,क्रूर, कुटिल अन्यायी को।
काल नाचता है अब सिर पर,गुस्सा आया साई को॥

पलभर में सब खेल बंद कर,भागा सिर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन,भगवान नहीं है अब खैर॥

सच है साई जैसा दानी,मिल न सकेगा जग में।
अंश ईश का साई बाबा,उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥

स्नेह, शील, सौजन्य आदि का,आभूषण धारण कर।
बढ़ता इस दुनिया में जो भी,मानव सेवा के पथ पर॥

वही जीत लेता है जगती के,जन जन का अन्तःस्थल।
उसकी एक उदासी ही,जग को कर देती है विह्वल॥

जब-जब जग में भार पाप का,बढ़-बढ़ ही जाता है।
उसे मिटाने की ही खातिर,अवतारी ही आता है॥

पाप और अन्याय सभी कुछ,इस जगती का हर के।
दूर भगा देता दुनिया के,दानव को क्षण भर के॥

स्नेह सुधा की धार बरसने,लगती है इस दुनिया में।
गले परस्पर मिलने लगते,हैं जन-जन आपस में॥

ऐसे अवतारी साई,मृत्युलोक में आकर।
समता का यह पाठ पढ़ाया,सबको अपना आप मिटाकर ॥90॥

नाम द्वारका मस्जिद का,रखा शिरडी में साई ने।
दाप, ताप, संताप मिटाया,जो कुछ आया साई ने॥

सदा याद में मस्त राम की,बैठे रहते थे साई।
पहर आठ ही राम नाम को,भजते रहते थे साई॥

सूखी-रूखी ताजी बासी,चाहे या होवे पकवान।
सौदा प्यार के भूखे साई की,खातिर थे सभी समान॥

स्नेह और श्रद्धा से अपनी,जन जो कुछ दे जाते थे।
बड़े चाव से उस भोजन को,बाबा पावन करते थे॥

कभी-कभी मन बहलाने को,बाबा बाग में जाते थे।
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति,छटा को वे होते थे॥

रंग-बिरंगे पुष्प बाग के,मंद-मंद हिल-डुल करके।
बीहड़ वीराने मन में भी,स्नेह सलिल भर जाते थे॥

ऐसी समुधुर बेला में भी,दुख आपात, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने,जन रहते बाबा को घेरे॥

सुनकर जिनकी करूणकथा को,नयन कमल भर आते थे।
दे विभूति हर व्यथा, शांति,उनके उर में भर देते थे॥

जाने क्या अद्भुत शिक्त,उस विभूति में होती थी।
जो धारण करते मस्तक पर,दुःख सारा हर लेती थी॥

धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन,जो बाबा साई के पाए।
धन्य कमल कर उनके जिनसे,चरण-कमल वे परसाए ॥

काश निर्भय तुमको भी,साक्षात् साई मिल जाता।
वर्षों से उजड़ा चमन अपना,फिर से आज खिल जाता॥

गर पकड़ता मैं चरण श्री के,नहीं छोड़ता उम्रभर।
मना लेता मैं जरूर उनको,गर रूठते साई मुझ पर॥

26Jun

श्री पार्वती चालीसा – Mata Parvati Chalisa

श्री पार्वती चालीसा – Mata Parvati Chalisa

ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे।पंच बदन नित तुमको ध्यावे॥
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो।सहसबदन श्रम करत घनेरो॥

तेऊ पार न पावत माता।स्थित रक्षा लय हित सजाता॥
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे।अति कमनीय नयन कजरारे॥

ललित ललाट विलेपित केशर।कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर॥
कनक बसन कंचुकी सजाए।कटी मेखला दिव्य लहराए॥

कण्ठ मदार हार की शोभा।जाहि देखि सहजहि मन लोभा॥
बालारुण अनन्त छबि धारी।आभूषण की शोभा प्यारी॥

नाना रत्न जटित सिंहासन।तापर राजति हरि चतुरानन॥
इन्द्रादिक परिवार पूजित।जग मृग नाग यक्ष रव कूजित॥

गिर कैलास निवासिनी जय जय।कोटिक प्रभा विकासिन जय जय॥
त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी।अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी॥

हैं महेश प्राणेश! तुम्हारे।त्रिभुवन के जो नित रखवारे॥
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब।सुकृत पुरातन उदित भए तब॥

बूढ़ा बैल सवारी जिनकी।महिमा का गावे कोउ तिनकी॥
सदा श्मशान बिहारी शंकर।आभूषण हैं भुजंग भयंकर॥

कण्ठ हलाहल को छबि छायी।नीलकण्ठ की पदवी पायी॥
देव मगन के हित अस कीन्हों।विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हों॥

ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि।दूरित विदारिणी मंगल कारिणि॥
देखि परम सौन्दर्य तिहारो।त्रिभुवन चकित बनावन हारो॥

भय भीता सो माता गंगा।लज्जा मय है सलिल तरंगा॥
सौत समान शम्भु पहआयी।विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी॥

तेहिकों कमल बदन मुरझायो।लखि सत्वर शिव शीश चढ़ायो ॥
नित्यानन्द करी बरदायिनी।अभय भक्त कर नित अनपायिनी॥

अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनि।माहेश्वरी हिमालय नन्दिनि॥
काशी पुरी सदा मन भायी।सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी॥

भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री।कृपा प्रमोद सनेह विधात्री॥
रिपुक्षय कारिणि जय जय अम्बे।वाचा सिद्ध करि अवलम्बे॥

गौरी उमा शंकरी काली।अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली॥
सब जन की ईश्वरी भगवती।पतिप्राणा परमेश्वरी सती॥

तुमने कठिन तपस्या कीनी।नारद सों जब शिक्षा लीनी॥
अन्न न नीर न वायु अहारा।अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा॥

पत्र घास को खाद्य न भायउ।उमा नाम तब तुमने पायउ॥
तप बिलोकि रिषि सात पधारे।लगे डिगावन डिगी न हारे॥

तब तव जय जय जय उच्चारेउ।सप्तरिषि निज गेह सिधारेउ॥
सुर विधि विष्णु पास तब आए।वर देने के वचन सुनाए॥

मांगे उमा वर पति तुम तिनसों।चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों॥
एवमस्तु कहि ते दोऊ गए।सुफल मनोरथ तुमने लए॥

करि विवाह शिव सों हे भामा।पुनः कहाई हर की बामा॥
जो पढ़िहै जन यह चालीसा।धन जन सुख देइहै तेहि ईसा॥

26Jun

श्री वैष्णो चालीसा – Shri Vaishno Devi Chalisa

श्री वैष्णो चालीसा – Shri Vaishno Devi Chalisa

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी।कलि काल मे शुभ कल्याणी॥
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी।पिंडी रूप में हो अवतारी॥

देवी देवता अंश दियो है।रत्नाकर घर जन्म लियो है॥
करी तपस्या राम को पाऊँ।त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥

कहा राम मणि पर्वत जाओ।कलियुग की देवी कहलाओ॥
विष्णु रूप से कल्की बनकर।लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥

तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ।गुफा अंधेरी जाकर पाओ॥
काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ।करेंगी शोषण-पार्वती माँ॥

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे।हनुमत भैरों प्रहरी प्यारे॥
रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें।कलियुग-वासी पूजत आवें॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल।चरणामृत चरणों का निर्मल॥
दिया फलित वर माँ मुस्काई।करन तपस्या पर्वत आई॥

कलि कालकी भड़की ज्वाला।इक दिन अपना रूप निकाला॥
कन्या बन नगरोटा आई।योगी भैरों दिया दिखाई॥

रूप देख सुन्दर ललचाया।पीछे-पीछे भागा आया॥
कन्याओं के साथ मिली माँ।कौल-कंदौली तभी चली माँ॥

देवा माई दर्शन दीना।पवन रूप हो गई प्रवीणा॥
नवरात्रों में लीला रचाई।भक्त श्रीधर के घर आई॥

योगिन को भण्डारा दीना।सबने रूचिकर भोजन कीना॥
मांस, मदिरा भैरों मांगी।रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥

बाण मारकर गंगा निकाली।पर्वत भागी हो मतवाली॥
चरण रखे आ एक शिला जब।चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥

पीछे भैरों था बलकारी।छोटी गुफा में जाय पधारी॥
नौ माह तक किया निवासा।चली फोड़कर किया प्रकाशा॥

आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी।कहलाई माँ आद कुंवारी॥
गुफा द्वार पहुँची मुस्काई।लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥

भागा-भागा भैरों आया।रक्षा हित निज शस्त्र चलाया॥
पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर।किया क्षमा जा दिया उसे वर॥

अपने संग में पुजवाऊंगी।भैरों घाटी बनवाऊंगी॥
पहले मेरा दर्शन होगा।पीछे तेरा सुमरन होगा॥

बैठ गई माँ पिण्डी होकर।चरणों में बहता जल झर-झर॥
चौंसठ योगिनी-भैंरो बरवन।सप्तऋषि आ करते सुमरन॥

घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे।गुफा निराली सुन्दर लागे॥
भक्त श्रीधर पूजन कीना।भक्ति सेवा का वर लीना॥

सेवक ध्यानूं तुमको ध्याया।ध्वजा व चोला आन चढ़ाया॥
सिंह सदा दर पहरा देता।पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥

जम्बू द्वीप महाराज मनाया।सर सोने का छत्र चढ़ाया ॥
हीरे की मूरत संग प्यारी।जगे अखंड इक जोत तुम्हारी॥

आश्विन चैत्र नवराते आऊँ।पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ॥
सेवक ‘शर्मा’ शरण तिहारी।हरो वैष्णो विपत हमारी॥

26Jun

श्री राधा चालीसा – Shri Radha Chalisa

श्री राधा चालीसा – Shri Radha Chalisa

जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा।कीरति नंदिनि शोभा धामा॥
नित्य बिहारिनि श्याम अधारा।अमित मोद मंगल दातारा॥

रास विलासिनि रस विस्तारिनी।सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥
नित्य किशोरी राधा गोरी।श्याम प्राणधन अति जिय भोरी॥

करुणा सागर हिय उमंगिनि।ललितादिक सखियन की संगिनी॥
दिन कर कन्या कूल बिहारिनि।कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥

नित्य श्याम तुमरौ गुण गावें।राधा राधा कहि हरषावें॥
मुरली में नित नाम उचारे।तुव कारण प्रिया वृषभानु दुलारी॥

नवल किशोरी अति छवि धामा।द्युति लघु लगै कोटि रति कामा॥
गौरांगी शशि निंदक बढ़ना।सुभग चपल अनियारे नयना॥

जावक युग युग पंकज चरना।नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना॥
संतत सहचरि सेवा करहीं।महा मोद मंगल मन भरहीं॥

रसिकन जीवन प्राण अधारा।राधा नाम सकल सुख सारा॥
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा।ध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा॥

उपजेउ जासु अंश गुण खानी।कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥
नित्यधाम गोलोक विहारिनी।जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥

शिव अज मुनि सनकादिक नारद।पार न पायें शेष अरु शारद॥
राधा शुभ गुण रूप उजारी।निरखि प्रसन्न होत बनवारी॥

ब्रज जीवन धन राधा रानी।महिमा अमित न जाय बखानी॥
प्रीतम संग देई गलबाँही।बिहरत नित्य वृन्दाबन माँही॥

राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा।एक रूप दोउ प्रीति अगाधा॥
श्री राधा मोहन मन हरनी।जन सुख दायक प्रफुलित बदनी॥

कोटिक रूप धरें नंद नन्दा।दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥
रास केलि करि तुम्हें रिझावें।मान करौ जब अति दुख पावें॥

प्रफुलित होत दर्श जब पावें।विविध भाँति नित विनय सुनावें॥
वृन्दारण्य बिहारिनि श्यामा।नाम लेत पूरण सब कामा॥

कोटिन यज्ञ तपस्या करहू।विविध नेम व्रत हिय में धरहू॥
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें।जब लगि राधा नाम न गावे॥

वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा।लीला बपु तब अमित अगाधा॥
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा।और तुम्हैं को जानन हारा॥

श्री राधा रस प्रीति अभेदा।सारद गान करत नित वेदा॥
राधा त्यागि कृष्ण को भेजिहैं।ते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं ॥

कीरति कुँवरि लाड़िली राधा।सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥
नाम अमंगल मूल नसावन।त्रिविध ताप हर हरि मन भावन॥

राधा नाम लेइ जो कोई।सहजहि दामोदर बस होई॥
राधा नाम परम सुखदाई।भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥

यशुमति नन्दन पीछे फिरिहैं।जो कोउ गधा नाम सुमिरिहैं॥
राम विहारिन श्यामा प्यारी।करहु कृपा बरसाने वारी॥

वृन्दावन है शरण तिहारौ।जय जय जय वृषभानु दुलारी॥

26Jun

श्री शीतला चालीसा – Shri Sheetla Mata Chalisa

श्री शीतला चालीसा – Shri Sheetla Mata Chalisa

जय-जय-जय शीतला भवानी।जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित।पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥

विस्फोटक से जलत शरीरा।शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा।सबके गाढ़े आवहिं कामा॥

शोकहरी शंकरी भवानी।बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै।मस्तक तेज सूर्य समराजै॥

चौसठ योगिन संग में गावैं।वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं।सहज शेष शिव पार ना पावैं॥

धन्य-धन्य धात्री महारानी।सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी।दैत्य एक विस्फोटक भारी॥

घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत।रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी।सक्यो न जब संकट टारी॥

तब मैया धरि अद्भुत रूपा।करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो।मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥

बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा।मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं।जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥

भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं।विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना।वचन सत्य भाषे भगवाना॥

विस्फोटक भय जिहि गृह भाई।भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै।द्विज से विधिवत पाठ करावै॥

तुम्हीं शीतला, जग की माता।तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी।नमो नमामि शीतले देवी॥

नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी।नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी।दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥

श्री शीतला, शेढ़ला, महला।रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी।शोभित पंचनाम असवारी॥

रासभ, खर बैशाख सुनन्दन।गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई।जाहि सकल दुख दूर पराई॥

गलका, गलगन्डादि जुहोई।ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन।और नहिं कोई है साधन॥

निश्चय मातु शरण जो आवै।निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै।अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥

वन्ध्या नारि पुत्र को पावै।जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत।लखा मूक को छन्द बनावत॥

यामे कोई करै जनि शंका।जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा।तट प्रयाग से पूरब पासा॥

पुरी तिवारी मोर निवासा।ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत।मातु कृपा कौ बाट निहारत॥

पड़ा क्षर तव आस लगाई।रक्षा करहु शीतला माई॥

26Jun

श्री तुलसी चालीसा – Shri Tulsi Mata Chalisa

श्री तुलसी चालीसा – Shri Tulsi Mata Chalisa

धन्य धन्य श्री तलसी माता।महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी।हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो।तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥
हे भगवन्त कन्त मम होहू।दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी।दीन्हो श्राप कध पर आनी॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी।होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा।करहु वास तुहू नीचन धामा॥
दियो वचन हरि तब तत्काला।सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा।पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा।तासु भई तुलसी तू बामा॥

कृष्ण रास लीला के माही।राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला।नर लोकही तुम जन्महु बाला॥

यो गोप वह दानव राजा।शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥
तुलसी भई तासु की नारी।परम सती गुण रूप अगारी॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ।कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥
वृन्दा नाम भयो तुलसी को।असुर जलन्धर नाम पति को॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा।लीन्हा शंकर से संग्राम॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे।मरही न तब हर हरिही पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी।कोऊ न सके पतिहि संहारी॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई।वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा।कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥
भयो जलन्धर कर संहारा।सुनी उर शोक उपारा॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी।लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता।सोई रावन तस हरिही सीता॥

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा।धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥
यही कारण लही श्राप हमारा।होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे।दियो श्राप बिना विचारे॥
लख्यो न निज करतूती पति को।छलन चह्यो जब पारवती को॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा।जग मह तुलसी विटप अनूपा॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा।नदी गण्डकी बीच ललामा॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं।सब सुख भोगी परम पद पईहै॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा।अतिशय उठत शीश उर पीरा॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत।सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी।रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर।तुलसी राधा में नाही अन्तर॥
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा।बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही।लहत मुक्ति जन संशय नाही॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत।तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥

बसत निकट दुर्बासा धामा।जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥
पाठ करहि जो नित नर नारी।होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥

26Jun

श्री सरस्वती चालीसा – Shri Saraswati Mata Chalisa

श्री सरस्वती चालीसा – Shri Saraswati Mata Chalisa

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुजधारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥

तबहि मातु ले निज अवतारा।पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी।तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामायण जो रचे बनाई।आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।केवल कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहूता।तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥

राखु लाज जननी अब मेरी।विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥

मातु सहाय भई तेहि काला।बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी।सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै।कानन में घेरे मृग नाहै॥

सागर मध्य पोत के भंगे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥

करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करै हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।मो कहं दास सदा निज जानी॥

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