26Jun

श्री गंगा चालीसा – Shri Ganga Mata Chalisa

श्री गंगा चालीसा – Shri Ganga Mata Chalisa

जय जय जननी हराना अघखानी।आनंद करनी गंगा महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥

जय जय जहानु सुता अघ हनानी।भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु सजे।लखी शत शरद चन्द्र छवि लजाई॥

वहां मकर विमल शुची सोहें।अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥

जग पावनी त्रय ताप नासवनी।तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥

ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।गंगा सागर तीरथ धरयो॥

अगम तरंग उठ्यो मन भवन।लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।धरयो मातु पुनि काशी करवत॥

धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥
भागीरथी ताप कियो उपारा।दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥

जब जग जननी चल्यो हहराई।शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥

पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भें त्रय धारा।मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा॥

गईं पाताल प्रभावती नामा।मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥

धनि मइया तब महिमा भारी।धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥

पन करत निर्मल गंगा जल।पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥

जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन कहू न तारे।तिन तारे इक नाम तिहारे॥

शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥

जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै।रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥

गंगा गंगा जो नर कहहीं।भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥

महं अघिन अधमन कहं तारे।भए नरका के बंद किवारें॥
जो नर जपी गंग शत नामा।सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥

सब सुख भोग परम पद पावहीं।आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।मिली भक्ति अविरल वागीसा॥

26Jun

श्री लक्ष्मी चालीसा – Shri Lakshmi Mata Chalisa

श्री लक्ष्मी चालीसा – Shri Lakshmi Mata Chalisa

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी।सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा।सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी।विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी।दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी।कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी।सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी।जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता।संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो।चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी।सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा।रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा।लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं।सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी।विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी।कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई।मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई।पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई।जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई।मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि।त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै।ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै।पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना।अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै।शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा।ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै।कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा।तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही।उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई।लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा।होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी।सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं।तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै।संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी।दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी।तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में।सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण।कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई।ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

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26Jun

श्री गायत्री चालीसा – Shri Gayatri Mata Chalisa

श्री गायत्री चालीसा – Shri Gayatri Mata Chalisa

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी।गायत्री नित कलिमल दहनी॥
अक्षर चौविस परम पुनीता।इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥

शाश्वत सतोगुणी सत रूपा।सत्य सनातन सुधा अनूपा॥
हंसारूढ सिताम्बर धारी।स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥

पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला।शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई।सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया।निराकार की अद्भुत माया॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई।तरै सकल संकट सों सोई॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली।दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं।जो शारद शत मुख गुन गावैं॥

चार वेद की मात पुनीता।तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥
महामन्त्र जितने जग माहीं।कोउ गायत्री सम नाहीं॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै।आलस पाप अविद्या नासै॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी।कालरात्रि वरदा कल्याणी॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते।तुम सों पावें सुरता तेते॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे।जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी।जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना।तुम सम अधिक न जगमे आना॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा।तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई।पारस परसि कुधातु सुहाई॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई।माता तुम सब ठौर समाई॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे।सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता।पालक पोषक नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी।तुम सन तरे पातकी भारी॥

जापर कृपा तुम्हारी होई।तापर कृपा करें सब कोई॥
मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें।रोगी रोग रहित हो जावें॥

दरिद्र मिटै कटै सब पीरा।नाशै दुःख हरै भव भीरा॥
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी।नासै गायत्री भय हारी॥

सन्तति हीन सुसन्तति पावें।सुख संपति युत मोद मनावें॥
भूत पिशाच सबै भय खावें।यम के दूत निकट नहिं आवें॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई।अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी।विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी।तुम सम ओर दयालु न दानी॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे।सो साधन को सफल बनावे॥

सुमिरन करे सुरूचि बडभागी।लहै मनोरथ गृही विरागी॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता।सब समर्थ गायत्री माता॥

ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी।आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें।सो सो मन वांछित फल पावें॥

बल बुधि विद्या शील स्वभाउ।धन वैभव यश तेज उछाउ॥
सकल बढें उपजें सुख नाना।जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥

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26Jun

श्री दुर्गा चालीसा – Durga Mata Chalisa

श्री दुर्गा चालीसा – Durga Mata Chalisa

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लय कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजे॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत।तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे।मोह मदादिक सब विनशावै॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥

जब लगि जियउं दया फल पाऊं।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

26Jun

श्री बालाजी चालीसा – Shri Bala ji Chalisa

श्री बालाजी चालीसा – Shri Bala ji Chalisa

जय हनुमान बालाजी देवा।प्रगट भये यहां तीनों देवा॥
प्रेतराज भैरव बलवाना।कोतवाल कप्तानी हनुमाना॥

मैंहदीपुर अवतार लिया है।भक्तों का उध्दार किया है॥
बालरूप प्रगटे हैं यहां पर।संकट वाले आते जहाँ पर॥

डाकनि शाकनि अरु जिन्दनीं।मशान चुड़ैल भूत भूतनीं॥
जाके भय ते सब भाग जाते।स्याने भोपे यहाँ घबराते॥

चौकी बन्धन सब कट जाते।दूत मिले आनन्द मनाते॥
सच्चा है दरबार तिहारा।शरण पड़े सुख पावे भारा॥

रूप तेज बल अतुलित धामा।सन्मुख जिनके सिय रामा॥
कनक मुकुट मणि तेज प्रकाशा।सबकी होवत पूर्ण आशा॥

महन्त गणेशपुरी गुणीले।भये सुसेवक राम रंगीले॥
अद्भुत कला दिखाई कैसी।कलयुग ज्योति जलाई जैसी॥

ऊँची ध्वजा पताका नभ में।स्वर्ण कलश हैं उन्नत जग में॥
धर्म सत्य का डंका बाजे।सियाराम जय शंकर राजे॥

आन फिराया मुगदर घोटा।भूत जिन्द पर पड़ते सोटा॥
राम लक्ष्मन सिय ह्रदय कल्याणा।बाल रूप प्रगटे हनुमाना॥

जय हनुमन्त हठीले देवा।पुरी परिवार करत हैं सेवा॥
लड्डू चूरमा मिश्री मेवा।अर्जी दरखास्त लगाऊ देवा॥

दया करे सब विधि बालाजी।संकट हरण प्रगटे बालाजी॥
जय बाबा की जन जन ऊचारे।कोटिक जन तेरे आये द्वारे॥

बाल समय रवि भक्षहि लीन्हा।तिमिर मय जग कीन्हो तीन्हा॥
देवन विनती की अति भारी।छाँड़ दियो रवि कष्ट निहारी॥

लांघि उदधि सिया सुधि लाये।लक्ष्मन हित संजीवन लाये॥
रामानुज प्राण दिवाकर।शंकर सुवन माँ अंजनी चाकर॥

केशरी नन्दन दुख भव भंजन।रामानन्द सदा सुख सन्दन॥
सिया राम के प्राण पियारे।जब बाबा की भक्त ऊचारे॥

संकट दुख भंजन भगवाना।दया करहु हे कृपा निधाना॥
सुमर बाल रूप कल्याणा।करे मनोरथ पूर्ण कामा॥

अष्ट सिध्दि नव निधि दातारी।भक्त जन आवे बहु भारी॥
मेवा अरु मिष्ठान प्रवीना।भैंट चढ़ावें धनि अरु दीना॥

नृत्य करे नित न्यारे न्यारे।रिध्दि सिध्दियां जाके द्वारे॥
अर्जी का आदेश मिलते ही।भैरव भूत पकड़ते तबही॥

कोतवाल कप्तान कृपाणी।प्रेतराज संकट कल्याणी॥
चौकी बन्धन कटते भाई।जो जन करते हैं सेवकाई॥

रामदास बाल भगवन्ता।मैंहदीपुर प्रगटे हनुमन्ता॥
जो जन बालाजी में आते।जन्म जन्म के पाप नशाते॥

जल पावन लेकर घर जाते।निर्मल हो आनन्द मनाते॥
क्रूर कठिन संकट भग जावे।सत्य धर्म पथ राह दिखावे॥

जो सत पाठ करे चालीसा।तापर प्रसन्न होय बागीसा॥
कल्याण स्नेही, स्नेह से गावे।सुख समृध्दि रिध्दि सिध्दि पावे॥

26Jun

श्री परशुराम चालीसा – Shri Prabhu Parashurama Chalisa

श्री परशुराम चालीसा – Shri Prabhu Parashurama Chalisa

जय प्रभु परशुराम सुख सागर।जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर॥
भृगुकुल मुकुट विकट रणधीरा।क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा॥

जमदग्नी सुत रेणुका जाया।तेज प्रताप सकल जग छाया॥
मास बैसाख सित पच्छ उदारा।तृतीया पुनर्वसु मनुहारा॥

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा।तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा॥
तब ऋषि कुटीर रूदन शिशु कीन्हा।रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा॥

निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े।मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े॥
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा।जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा॥

धरा राम शिशु पावन नामा।नाम जपत जग लह विश्रामा॥
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर।कांधे मुंज जनेऊ मनहर॥

मंजु मेखला कटि मृगछाला।रूद्र माला बर वक्ष विशाला॥
पीत बसन सुन्दर तनु सोहें।कंध तुणीर धनुष मन मोहें॥

वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता।क्रोध रूप तुम जग विख्याता॥
दायें हाथ श्रीपरशु उठावा।वेद-संहिता बायें सुहावा॥

विद्यावान गुण ज्ञान अपारा।शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा॥
भुवन चारिदस अरु नवखंडा।चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा॥

एक बार गणपति के संगा।जूझे भृगुकुल कमल पतंगा॥
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा।एक दंत गणपति भयो नामा॥

कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला।सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला॥
सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं।रखिहहुं निज घर ठानि मन मांहीं॥

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई।भयो पराजित जगत हंसाई॥
तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी।रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी॥

ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना।तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा॥
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता।मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता॥

पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा।भा अति क्रोध मन शोक अपारा॥
कर गहि तीक्षण परशु कराला।दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला॥

क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा।पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा॥
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी।छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी॥

जुग त्रेता कर चरित सुहाई।शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई॥
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना।तब समूल नाश ताहि ठाना॥

कर जोरि तब राम रघुराई।बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई॥
भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता।भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता॥

शास्त्र विद्या देह सुयश कमावा।गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा॥
चारों युग तव महिमा गाई।सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई॥

दे कश्यप सों संपदा भाई।तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई॥
अब लौं लीन समाधि नाथा।सकल लोक नावइ नित माथा॥

चारों वर्ण एक सम जाना।समदर्शी प्रभु तुम भगवाना॥
ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी।देव दनुज नर भूप भिखारी॥

जो यह पढ़ै श्री परशु चालीसा।तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा॥
पृर्णेन्दु निसि बासर स्वामी।बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी॥

26Jun

श्री विश्वकर्मा चालीसा – Shri Vishwakarma Chalisa

श्री विश्वकर्मा चालीसा – Shri Vishwakarma Chalisa

विश्वकर्मा तव नाम अनूपा।पावन सुखद मनन अनरूपा॥
सुंदर सुयश भुवन दशचारी।नित प्रति गावत गुण नरनारी॥

शारद शेष महेश भवानी।कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी॥
आगम निगम पुराण महाना।गुणातीत गुणवंत सयाना॥

जग महँ जे परमारथ वादी।धर्म धुरंधर शुभ सनकादि॥
नित नित गुण यश गावत तेरे।धन्य-धन्य विश्वकर्मा मेरे॥

आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी।मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी॥
जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकी।भुवन चारि दश कीर्ति कला की॥

ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब।वेद पारंगत ऋषि भयो तब॥
दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना।कीर्ति कला इतिहास सुजाना॥

तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो।चौदह विधा भू पर फैलायो॥
लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा।शिला शिल्प जो पंचक वर्णा॥

दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्यो।सुख समृद्धि जगमहँ परकाश्यो॥
सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे।ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे॥

जगत गुरु इस हेतु भये तुम।तम-अज्ञान-समूह हने तुम॥
दिव्य अलौकिक गुण जाके वर।विघ्न विनाशन भय टारन कर॥

सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा।ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा॥
विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम।शिवकल्याणदायक अति अनुपम॥

नमो नमो विश्वकर्मा देवा।सेवत सुलभ मनोरथ देवा॥
देव दनुज किन्नर गन्धर्वा।प्रणवत युगल चरण पर सर्वा॥

अविचल भक्ति हृदय बस जाके।चार पदारथ करतल जाके॥
सेवत तोहि भुवन दश चारी।पावन चरण भवोभव कारी॥

विश्वकर्मा देवन कर देवा।सेवत सुलभ अलौकिक मेवा॥
लौकिक कीर्ति कला भंडारा।दाता त्रिभुवन यश विस्तारा॥

भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरि।वेद अथर्वण तत्व मनन करि॥
अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का।धनुर्वेद सब कृत्य आपका॥

जब जब विपति बड़ी देवन पर।कष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर॥
विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल।रूद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल॥

इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका।पुष्पक यान अलौकिक चाका॥
वायुयान मय उड़न खटोले।विधुत कला तंत्र सब खोले॥

सूर्य चंद्र नवग्रह दिग्पाला।लोक लोकान्तर व्योम पताला॥
अग्नि वायु क्षिति जल अकाशा।आविष्कार सकल परकाशा॥

मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना।देवागम मुनि पंथ सुजाना॥
लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा।स्वर्णकार मय पंचक धर्मा॥

शिव दधीचि हरिश्चंद्र भुआरा।कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा॥
परशुराम, नल, नील, सुचेता।रावण, राम शिष्य सब त्रेता॥

ध्वापर द्रोणाचार्य हुलासा।विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा॥
मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ।विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ॥

नाना विधि तिलस्मी करि लेखा।विक्रम पुतली दॄश्य अलेखा॥
वर्णातीत अकथ गुण सारा।नमो नमो भय टारन हारा॥

26Jun

श्री नवग्रह चालीसा – Shri Navgrah Chalisa

श्री नवग्रह चालीसा – Shri Navgrah Chalisa

श्री सूर्य स्तुति

प्रथमहि रवि कहँ नावौं माथा।करहुं कृपा जनि जानि अनाथा॥
हे आदित्य दिवाकर भानू।मैं मति मन्द महा अज्ञानू॥

अब निज जन कहँ हरहु कलेषा।दिनकर द्वादश रूप दिनेशा॥
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर।अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर॥

श्री चन्द्र स्तुति

शशि मयंक रजनीपति स्वामी।चन्द्र कलानिधि नमो नमामि॥
राकापति हिमांशु राकेशा।प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा॥

सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर।शीत रश्मि औषधि निशाकर॥
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा।शरण शरण जन हरहुं कलेशा॥

श्री मङ्गल स्तुति

जय जय जय मंगल सुखदाता।लोहित भौमादिक विख्याता॥
अंगारक कुज रुज ऋणहारी।करहु दया यही विनय हमारी॥

हे महिसुत छितिसुत सुखराशी।लोहितांग जय जन अघनाशी॥
अगम अमंगल अब हर लीजै।सकल मनोरथ पूरण कीजै॥

श्री बुध स्तुति

जय शशि नन्दन बुध महाराजा।करहु सकल जन कहँ शुभ काजा॥
दीजैबुद्धि बल सुमति सुजाना।कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा॥

हे तारासुत रोहिणी नन्दन।चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन॥
पूजहु आस दास कहु स्वामी।प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी॥

श्री बृहस्पति स्तुति

जयति जयति जय श्री गुरुदेवा।करों सदा तुम्हरी प्रभु सेवा॥
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी।इन्द्र पुरोहित विद्यादानी॥

वाचस्पति बागीश उदारा।जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा॥
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा।करहु सकल विधि पूरण कामा॥

श्री शुक्र स्तुति

शुक्र देव पद तल जल जाता।दास निरन्तन ध्यान लगाता॥
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन।दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन॥

भृगुकुल भूषण दूषण हारी।हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी॥
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा।नर शरीर के तुमहीं राजा॥

श्री शनि स्तुति

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन।जय कृष्णो सौरी जगवन्दन॥
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा।वप्र आदि कोणस्थ ललामा॥

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा।क्षण महँ करत रंक क्षण राजा॥
ललत स्वर्ण पद करत निहाला।हरहु विपत्ति छाया के लाला॥

श्री राहु स्तुति

जय जय राहु गगन प्रविसइया।तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया॥
रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा।शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा॥

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा।अर्धकाय जग राखहु लाजा॥
यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहु।सदा शान्ति और सुख उपजावहु॥

श्री केतु स्तुति

जय श्री केतु कठिन दुखहारी।करहु सुजन हित मंगलकारी॥
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला।घोर रौद्रतन अघमन काला॥

शिखी तारिका ग्रह बलवान।महा प्रताप न तेज ठिकाना॥
वाहन मीन महा शुभकारी।दीजै शान्ति दया उर धारी॥

नवग्रह शान्ति फल

तीरथराज प्रयाग सुपासा।बसै राम के सुन्दर दासा॥
ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी।दुर्वासाश्रम जन दुख हारी॥

नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु।जन तन कष्ट उतारण सेतू॥
जो नित पाठ करै चित लावै।सब सुख भोगि परम पद पावै॥

26Jun

श्री ब्रह्मा चालीसा – Shri Brahma Chalisa

श्री ब्रह्मा चालीसा – Shri Brahma Chalisa

जय जय कमलासान जगमूला।रहहु सदा जनपै अनुकूला॥
रुप चतुर्भुज परम सुहावन।तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन॥

रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा।मस्तक जटाजुट गंभीरा॥
ताके ऊपर मुकुट बिराजै।दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै॥

श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर।है यज्ञोपवीत अति मनहर॥
कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं।गल मोतिन की माला राजहिं॥

चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये।दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये॥
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा।अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा॥

अर्द्धांगिनि तव है सावित्री।अपर नाम हिये गायत्री॥
सरस्वती तब सुता मनोहर।वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर॥

कमलासन पर रहे बिराजे।तुम हरिभक्ति साज सब साजे॥
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा।नाभि कमल भो प्रगट अनूपा॥

तेहि पर तुम आसीन कृपाला।सदा करहु सन्तन प्रतिपाला॥
एक बार की कथा प्रचारी।तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी॥

कमलासन लखि कीन्ह बिचारा।और न कोउ अहै संसारा॥
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा।अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा॥

कोटिक वर्ष गये यहि भांती।भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती॥
पै तुम ताकर अन्त न पाये।ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये॥

पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा।महापघ यह अति प्राचीन॥
याको जन्म भयो को कारन।तबहीं मोहि करयो यह धारन॥

अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं।सब कुछ अहै निहित मो माहीं॥
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो।निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये॥

गगन गिरा तब भई गंभीरा।ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा॥
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई।ब्रह्म अनादि अलख है सोई॥

निज इच्छा इन सब निरमाये।ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये॥
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा।सब जग इनकी करिहै सेवा॥

महापघ जो तुम्हरो आसन।ता पै अहै विष्णु को शासन॥
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई।तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई॥

भ्ौटहु जाई विष्णु हितमानी।यह कहि बन्द भई नभवानी॥
ताहि श्रवण कहि अचरज माना।पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना॥

कमल नाल धरि नीचे आवा।तहां विष्णु के दर्शन पावा॥
शयन करत देखे सुरभूपा।श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा॥

सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर।क्रीटमुकट राजत मस्तक पर॥
गल बैजन्ती माल बिराजै।कोटि सूर्य की शोभा लाजै॥

शंख चक्र अरु गदा मनोहर।शेष नाग शय्या अति मनहर॥
दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू।हर्षित भे श्रीपति सुख धामू॥

बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन।तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन॥
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना।ब्रह्मारुप हम दोउ समाना॥

तीजे श्री शिवशंकर आहीं।ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही॥
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा।हम पालन करिहैं संसारा॥

शिव संहार करहिं सब केरा।हम तीनहुं कहँ काज धनेरा॥
अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु।निराकार तिनकहँ तुम जानहु॥

हम साकार रुप त्रयदेवा।करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा॥
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये।परब्रह्म के यश अति गाये॥

सो सब विदित वेद के नामा।मुक्ति रुप सो परम ललामा॥
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा।पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा॥

नाम पितामह सुन्दर पायेउ।जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ॥
लीन्ह अनेक बार अवतारा।सुन्दर सुयश जगत विस्तारा॥

देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं।मनवांछित तुम सन सब पावहिं॥
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी।ताकी आस पुजावहु सारी॥

पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई।तहँ तुम बसहु सदा सुरराई॥
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन।ता कर दूर होई सब दूषण॥

25Jun

Shri bhairav Chalisa – श्री भैरव चालीसा

Shri bhairav Chalisa – श्री भैरव चालीसा

जय डमरूधर नयन विशाला।श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।काशी कोतवाल, संकटहर॥

जय गिरिजासुत परमकृपाला।संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥
जयति बटुक भैरव भयहारी।जयति काल भैरव बलधारी॥

अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।सकल एक ते एक सिवाये॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।गणाधीश तुम सबके स्वामी॥

जटाजूट पर मुकुट सुहावै।भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै।दर्शन करत सकल भय भाजै॥

कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।मोरपंख को चंवर मनोहर॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥

वाहन श्वान सदा सुखरासी।तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥

नयन विशाल लाल अति भारी।रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती।शिव कहँ भजहु असुर आराती॥

एकरूप तुम शम्भु कहाये।दूजे भैरव रूप बनाये॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।सब जग के तुम अन्तर्यामी॥

रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥

तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥

चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥

अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।जयत सदा मेटत दुःख भारे॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥

भूतनाथ तुम परम पुनीता।तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।कालजयी तुम परम अनूपा॥

ऐलादी को संकट टार्यो।साद भक्त को कारज सारयो॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।तव चरणन नावहुं नित माथा॥

श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।दीन जानि मोहि पार उतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।होहु कृपालु दुष्ट आराती॥

सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा।तुम समान दूजो को देवा॥

अश्वनाथ तुम परम मनोहर।दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई।ताकहँ संकट परै न कोई॥

हरहु नाथ तुम जन की पीरा।तुम समान प्रभु को बलवीरा॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै।दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥

जो यह पाठ करे चालीसा।तापै कृपा करहु जगदीशा॥

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